Supreme Court का बड़ा फैसला: भाई की संपत्ति में बहन को मिला कानूनी हक!

Published On: July 12, 2025

Supreme Court Judgment: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है, जिसमें यह साफ किया गया है कि बेटियों को भी अपने पिता और भाई की संपत्ति में बराबर का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान समानता की बात करता है, इसलिए बेटियों को परिवार की पैतृक संपत्ति में केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे महिला हैं। यह फैसला उन बहनों के लिए बहुत बड़ी राहत है जिन्हें पारिवारिक संपत्ति से बाहर रखा गया था। अब वे कानूनी रूप से अपने हिस्से की मांग कर सकती हैं और भाई को वह देना होगा। यह फैसला खासतौर पर हिंदू उत्तराधिकार कानून के संदर्भ में लागू होता है।

पहले क्या था नियम

पहले के समय में भारत में पैतृक संपत्ति पर बेटियों का अधिकार स्पष्ट नहीं था। खासतौर पर शादी के बाद बहनों को माना जाता था कि अब उनका अधिकार मायके की संपत्ति पर नहीं है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत बेटियों को सीमित अधिकार मिलता था, लेकिन 2005 में हुए संशोधन ने उन्हें “कॉपार्सनर” का दर्जा दे दिया यानी अब वे भी पिता की संपत्ति में बेटों की तरह हिस्सेदार बन गईं। फिर भी जमीन पर हक को लेकर परिवारों में विवाद बना रहा और कई मामलों में बेटियों को हिस्सा नहीं मिला। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रम को खत्म कर दिया है।

किस आधार पर हुआ फैसला

यह फैसला एक विशेष मामले के आधार पर हुआ जिसमें एक बहन ने अपने भाई पर संपत्ति में हिस्सेदारी न देने का आरोप लगाया था। मामला कई वर्षों से कोर्ट में चल रहा था, और निचली अदालतों ने बहन के पक्ष में फैसला नहीं दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले का गहराई से परीक्षण किया और पाया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार बेटियों को भी बराबर का हक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पैतृक संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ है, तो बेटियों का हिस्सा सुरक्षित रहेगा और वे किसी भी समय दावा कर सकती हैं।

फैसला किन पर लागू

यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन सभी हिंदू परिवारों पर लागू होता है जहां पैतृक संपत्ति का मामला है। यह कानून भारत में रहने वाले हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों पर लागू होता है। यदि कोई पिता की संपत्ति अब तक बंटी नहीं है और वह पैतृक है, तो बहन उसमें हिस्सा मांग सकती है, चाहे उसकी शादी हो चुकी हो या नहीं। मुस्लिम और ईसाई परिवारों में संपत्ति का अलग नियम होता है, जो उनके व्यक्तिगत कानूनों द्वारा तय किया जाता है। इसलिए यह फैसला खास तौर पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत लागू होता है।

कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बेटियों को अब पैतृक संपत्ति में अधिकार पाने के लिए किसी विशेष दस्तावेज या वसीयत की आवश्यकता नहीं है। यदि पिता की संपत्ति बिना वसीयत के छोड़ी गई है, तो बेटा और बेटी दोनों का समान हक होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि शादी के बाद भी बहन का अधिकार समाप्त नहीं होता, क्योंकि कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता। इसके साथ ही कोर्ट ने निचली अदालतों को निर्देश दिया कि वे ऐसे मामलों में महिला पक्ष की याचिका को गंभीरता से लें और बराबरी का दृष्टिकोण अपनाएं।

भाई को क्या करना होगा

अब अगर किसी भाई के पास पूरी पैतृक संपत्ति है और उसने बहन को हिस्सा नहीं दिया है, तो उसे कानून के अनुसार बराबर का हिस्सा देना होगा। यदि बहन कोर्ट में जाती है, तो भाई को यह साबित करना होगा कि बंटवारा पहले ही हो चुका है और बहन को उसका हिस्सा मिल गया है। अगर वह ऐसा साबित नहीं कर पाता, तो कोर्ट द्वारा संपत्ति का पुनः मूल्यांकन करके बहन को उचित हिस्सा देने का आदेश दिया जा सकता है। इससे भाइयों को अब पारदर्शिता के साथ बंटवारा करना होगा और बहनों के अधिकारों को सम्मान देना पड़ेगा।

क्या शादीशुदा बहन को हक मिलेगा

यह एक आम भ्रम है कि शादी के बाद बहन को मायके की संपत्ति में कोई हक नहीं होता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि शादीशुदा बहन भी पैतृक संपत्ति की बराबर हिस्सेदार है। अदालत ने यह भी कहा कि महिला की शादी उसकी पहचान या संपत्ति के अधिकार को खत्म नहीं कर सकती। इसलिए अब किसी भी महिला को सिर्फ शादीशुदा होने के कारण संपत्ति से बाहर नहीं किया जा सकता। यह फैसला लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर और संपत्ति के मामलों में सशक्त बनाएगा।

क्या बहन कर सकती है केस

अगर किसी बहन को लगता है कि उसे उसके हिस्से की संपत्ति नहीं दी गई है, तो वह कानून की मदद ले सकती है। वह सिविल कोर्ट में जाकर अपने हिस्से की मांग कर सकती है। इसके लिए उसे वकील की मदद से याचिका दाखिल करनी होगी और प्रॉपर्टी से संबंधित दस्तावेज पेश करने होंगे। यदि अदालत को लगता है कि महिला का दावा सही है और बंटवारा नहीं हुआ है, तो उसे कानूनी रूप से हिस्सा दिया जाएगा। कोर्ट में मामला जाने से पहले परिवार में बातचीत कर लेना बेहतर होता है, लेकिन अधिकार मांगने से पीछे हटना गलत होगा।

आने वाले मामलों पर असर

इस फैसले से देशभर में चल रहे हजारों संपत्ति विवादों पर असर पड़ेगा। अब हर कोर्ट को यह स्पष्ट मार्गदर्शन मिल गया है कि बेटी को पैतृक संपत्ति में बराबर का हक देना होगा। कई बहनों ने अब तक डर, सामाजिक दबाव या जानकारी के अभाव में अपना हक नहीं मांगा, लेकिन अब उन्हें कानून का सहारा मिलेगा। यह फैसला समाज में बेटियों की स्थिति मजबूत करेगा और समानता को बढ़ावा देगा। वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि अब महिलाओं को लंबी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी।

FAQs: पूछे जाने वाले सवाल

Q1. क्या शादीशुदा बहन को भी हिस्सा मिलेगा?
हां, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि शादी के बाद भी बहन का कानूनी अधिकार बना रहेगा।

Q2. यह फैसला किन पर लागू होता है?
यह फैसला हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध परिवारों पर लागू होता है जिन पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है।

Q3. क्या भाई अकेले सारी संपत्ति रख सकता है?
नहीं, अब भाई को अपनी बहन को भी बराबर हिस्सा देना होगा।

Q4. बहन कैसे क्लेम कर सकती है?
वह सिविल कोर्ट में केस दर्ज कर सकती है और अपने हिस्से की मांग कर सकती है।

Q5. क्या यह फैसला पुराने मामलों पर भी लागू होगा?
हां, यदि संपत्ति का बंटवारा अब तक नहीं हुआ है तो यह फैसला पुराने मामलों पर भी लागू होगा।

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